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Gen-Z प्रोटेस्ट: जनता की आवाज़ या सोशल मीडिया का खेल?

नेपाल में हाल ही में भड़का Gen-Z प्रोटेस्ट सिर्फ़ एक स्थानीय घटना नहीं है। यह उस बड़े खेल की झलक है, जिसमें फेसबुक, टेलीग्राम और ट्विटर जैसे प्लेटफ़ॉर्म आजकल सरकारें बनाने और गिराने का काम कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या यह आंदोलन वाक़ई जनता की असली आवाज़ है, या फिर कहीं बाहर से लिखी गई स्क्रिप्ट का हिस्सा? कभी लोकतंत्र का मतलब होता था—लोग चुनाव में वोट डालें, सड़क पर प्रदर्शन करें, और सत्ता को आईना दिखाएँ। लेकिन अब दृश्य बदल चुका है। अब सरकारें सोशल मीडिया के एल्गोरिद्म और "ट्रेंडिंग हैशटैग्स" से तय हो रही हैं। बांग्लादेश में सरकार तब गिरी जब टेलीग्राम चैनलों ने जनता को सड़कों पर ला दिया। श्रीलंका में महंगाई और बेरोज़गारी पर ग़ुस्सा पहले फेसबुक पर भड़का, फिर राष्ट्रपति भवन की दीवारें हिल गईं। मालदीव जब चीन की तरफ झुका, तो अमेरिका-समर्थक नैरेटिव अचानक सोशल मीडिया पर हावी हो गया। पाकिस्तान में इमरान खान की कुर्सी हिली और उन्होंने खुलेआम कहा—“मेरी सरकार सोशल मीडिया और बाहरी दबाव से गिराई गई।” अब बताइए, ये सब महज़ संयोग हैं या एक पैटर्न? सोशल मीडिया कंपनियों का ठिकाना अमेरिका है,...